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अ॒भि प्र गोप॑तिं गि॒रेन्द्र॑मर्च॒ यथा॑ वि॒दे । सू॒नुं स॒त्यस्य॒ सत्प॑तिम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi pra gopatiṁ girendram arca yathā vide | sūnuṁ satyasya satpatim ||

पद पाठ

अ॒भि । प्र । गोऽप॑तिम् । गि॒रा । इन्द्र॑म् । अ॒र्च॒ । यथा॑ । वि॒दे । सू॒नुम् । स॒त्यस्य॑ । सत्ऽप॑तिम् ॥ ८.६९.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:69» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

पुनरपि इन्द्रवाच्य ईश्वर की प्रार्थना उपासना आदि प्रारम्भ करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! (वः) तुम सब ही मिल के (मन्दद्वीराय) धार्मिक पुरुषों को आनन्द देनेवाले (इन्दवे) और जगत् को विविध सुखों से सींचनेवाले परमात्मा के निमित्त (त्रिष्टुभम्+इषम्) स्तुतिमय अन्न (प्र+प्र) अच्छे प्रकार समर्पित करो, जो ईश्वर (धिया) शुभकर्म और (पुरन्ध्या) बहुत बुद्धि की प्राप्ति के हेतु (मेधसातये) यज्ञादि शुभकर्म करने के लिये (वः+विवासति) तुमको चाहता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - मन्दद्वीर उसका नाम है, जो गरीबों और असमर्थों को अन्यायी पुरुषों से बचाता है और स्वयं ब्रह्मचर्य्यादि धर्म पालने और शारीरिक मानसिक शक्तियों को बढ़ाते हुए सदा देशहित कार्य्य में नियुक्त रहता है। परमात्मा ऐसे पुरुषों से प्रसन्न होता है। इससे यह शिक्षा मिलती है कि प्रत्येक नर-नारी को वीर वीरा बनना चाहिये ॥१॥
टिप्पणी: विवासति=यह क्रिया दिखलाती है कि ईश्वर अपने सन्तानों की चिन्ता में रहता है और वह चाहता है कि मेरे पुत्र शुभकर्मी हों। तब ही उनकी बुद्धि और क्रियात्मक शक्ति की वृद्धि होगी। मेध=जितने शुभकर्म हैं, वे सब ही छोटे बड़े यज्ञ ही हैं। स्वार्थ को त्याग परार्थ के लिये प्रयत्न करना यह महायज्ञ है। हे मनुष्यों ! मनुष्यसमाज बहुत बिगड़ा हुआ है। इसको ज्ञान-विज्ञान देकर धर्म में लगाकर सुधार करना एक महान् अध्वर है ॥१॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनरपीन्द्रवाच्येश्वरार्थनोपासनादि प्रारभ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! वो यूयम्=अत्र प्रथमार्थे द्वितीयेति वैदिकप्रयोगः। मन्दद्वीराय=यो वीरान् धर्मशूरान् मन्दयते हर्षयति स मन्दद्वीरः तस्मै। पुनः। इन्दवे=विविधसुखैर्यो जगदिदमुनत्ति सिञ्चति स इन्दुः परमात्मा तस्मै। त्रिष्टुभम्=स्तुतिमयम्। इषम्=अन्नम्। प्रप्र=प्रकर्षेण। प्रेरयत=समर्पयत। यः परमात्मा। वो युष्मान्। धिया=शुभकर्मणा। पुरन्ध्या=बहुबुद्ध्या हेतुना। मेधसातये=विद्वद्भिः सह संगतिकरणाय विविधयज्ञसम्पादनाय च। विवासति=कामयते ॥१॥